पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/४३१

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7 ? ? ? "कौन लेगा भार यह कोन विचलेगा नही? दुवलता इस अस्थिमास की- ठोक कर लोहे से, परख कर बज्ज से, प्रलयोल्का खड के निक्प पर कस पर चूण अस्थि पुज सा हंसेगा अट्टहास कौन ? साधना पिशाचो की विखर चूर-चूर होने घूलि सी उडेगी क्सि दृप्त फूत्कार से । कौन लेगा भार यह जीवित है कौन? साम चलती है किसकी कहता है कौन ऊंची छाती कर, मै हूँ- -मैं हूँ-भेवाड म, अरावली शृग सा समुन्नत सिर क्सि का बोलो, कोई बोलो- अरे क्या तुम सब मृत हो आह, इस खेवा की कोन थामता है पतवार ऐसे अवड मे अन्धकार पारावार गहन नियति सा उमड रहा है ज्योति रेखा-हीन क्षुब्ध हो । सीच ले चला है- काल धीवर अनन्त मे, सास, सफरी मी अटकी है किसी आशा मे । आज भी पेशोला के- तरल जल मडलो मे, वही शब्द घूमता सा- गूंजता विक्ल है। किन्तु वह ध्वनि कहाँ? गौरव की काया पडी माया है प्रताप की वही मेवाड । किन्तु आज प्रतिध्वनि कहा - प्रसाद वाङ्गमय ।।३८०॥