पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/४८४

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"विश्वदेव, सविता या पूषा सोम, मरुत, चचल पवमान, वरण आदि सब घूम रहे हैं किसके शासन मे अम्लान ? किसका था भ्रू-भग प्रलय सा जिसमे ये सब विकल रहे, अरे । प्रकृति के शक्ति चिह्न ये फिर भी कितने निवल रहे । विकल हुआ सा काप रहा था, सकल भूत चेतन समुदाय, उनकी कमी वुरी दशा थीं वे थे विवश और निरपाय । देव न थे हम और न ये हैं सव परिवतन के पुतले, हाँ-कि गव-रथ मे तुरग सा, जितना जो चाहे जुत ले।" आशा ॥ ४३५॥