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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५०३

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पवन प्रेरित सौरभ साकार, 'रचित परमाणु पराग शरीर खडा हो ले मधु का आधार । और पडती हो उस पर शुभ्र नवल मधु राका मन की साध, हंसी का मद विह्वल प्रतिबिम्ब मधुरिमा खेला सदृश अबाध | - कहा मनु ने, "नभ धरणी बीच बना जीवन रहस्य निरुपाय, एक उरका सा जलता भ्रात, शूय मे फिरता हूँ असहाय । शेल निझर न बना हतभाग्य गल नही सका जो कि हिम सड दौड कर मिला न जलनिधि अक आह वैसा ही हूँ पापडा १ उठ खडा हो परमाणु पराग गठित तन ले मधु का आधार (पाण्डुलिपि में पूवरूप)। प्रसाद वाङ्गमय ॥ ४५८॥