पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५०७

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विषमता की पीडा से व्यस्त हो रहा स्पदित विश्व महान, यही दुख सुस विकास का सत्य यही भूमा का मधुमय दान । नित्य समरसता का अधिकार, उमडता कारण जलधि समान, व्यथा से नीली लहरो बीच बिखरते सुख मणि गण द्युतिमान।" लग कहने मनु सहित विषाद मधुर मारत से ये उच्छ्वास अधिक उत्साह तरग अबाध उठाते मानस म सविलास । किंतु जीवन क्तिना निरुपाय । लिया है देख नही सदेह निराशा है जिसका परिणाम सफलता का वह करिपत गेह।" प्रसाद वाङ्गमय ।।४६४॥