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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५०९

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युगो की चट्टानो पर सष्टि डाल पद चिह्न चली गभीर, देव, गधव, असुर की पवित अनुसरण करती उसे अधीर । "एक तुम, यह विस्तृत भू खड प्रकृति वैभव से भरा अमद, कम का भोग, भोग का कम यही जड का चेतन आनद । अकेले तुम कैसे असहाय यजन कर सकते ? तुच्छ विचार। तपस्वी। आक्पण से हीन पर सके नही आत्म विस्तार । दब रहे हो अपने ही बोझ खोजते भी न कही अवलब, तुम्हारा सहचर बन कर क्या न उऋण होऊ में विना विलम्ब ? प्रसाद वाङ्गमय ॥४६६॥