पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५५१

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सध्या की लाली में हंसती, उसा ही आश्रय लेती सी, छाया प्रतिमा गुनगुना उठी श्रद्धा का उत्तर देती सी। "इतना न चमत्कृत हो वाले। अपने मन का उपकार करो, में एक पक्ड है जो कहती ठहरो कुछ सोच विचार करो। अंबर-चुम्बी हिम शू गो से कलरव कोलाहल माथ लिये, विद्युत की प्राणमयी धारा वहती जिसम उमाद लिये। मगल युयुम की थी जिसमे निसरी हो कपा की लाली, भाला मुहाग इठलाता हो ऐसी हा जिसम हरियाली। प्रसाद वागमय ॥५१०॥ }