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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५५४

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अवशिष्ट रह गई अनुभव मे अपनी अतीत असफलता सी, लीला विलास को खेद भरी अवसाद मयो श्रम दलिता सी। 1 मैं रति की प्रतिकृति लज्जा हूँ मैं शालीनता सिखाती है मतवाली सुदरता पग मे नूपुर मी लिपट मनाती हूँ। लाली बन सरल कपोलो मे आखो में अजन सी लगती, कुचित अलको सी घुघराली मन की मरोर बन कर जगती । चचल किशोर सुन्दरता की में करती रहती रखवाली, में वह हलकी सी मसलन हूँ जो बनती कानो की लाली।" रज्जा ॥५१३॥