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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५६२

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और सत्य है, यह एक शब्द तू कितना गहन हुआ मेधा के क्रीडा-पजर का पाला हुमा सुआ dis मब वातो मे खोज तुम्हारी रट सी लगी हुई है, किन्तु स्पश से तक क्रो के बनता 'छुईमुई' असुर पुरोहित उस विप्लव से बच कर भटक व किलात आकुलि थे जिनने कष्ट अनेव रहे थे, सहे थे। देख देख कर मनु का पशु जो व्याकुल चचल रहती उनको आमिप लोलुप रसना आंखो से कुछ कहती। तक जीऊ क्यो किलात | खाते-खाते तृण और कहाँ क्व तक मैं देवू जीवित पशु घुट लहू का पोऊ। कर्म ॥२ER