पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मिलेगा, "कर्म यज्ञ से जीवन के सपनो का स्वर्ग इसी विपिन मे मानस की आशा का कुसुम खिलेगा। 7 किन्तु बनेगा कौन पुरोहित अब यह प्रश्न नया है क्सि विधान से करूँ यज्ञ यह पथ किस ओर गया है। अभिलापा, फिर इम श्रद्धा। पुण्य प्राप्य है मेरी वह अनत निजन मे खोजे अब किसको मेरी आशा।" कम ॥५२३॥