पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५७३

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यह व्यापार महा गतिशाली कही नही यमता क्या. क्षणिक विनाशो म स्थिर भगल चुपके से हंसता क्या । मानवता। यह विराग सवध हृदय का वैसी यह प्राणी को प्राणी के प्रति वस वची रही निममता। जीवन का सतोष अन्य का रोदन वन हंसता क्यो? एक एक विश्राम प्रगति को परिकर सा कसता क्यो? का कैसे दुव्यवहार एक अन्य कोन उपाय | गरल को कैसे अमृत बना जावेगा पावेगा।" प्रसाद वाङ्गमय ॥५३४॥