पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५८०

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आखें प्रिय आँखो मे, डूबे अरण अधर थे रस म हृदय काल्पनिक विजय मे सुखी चेतनता नस नस मे। छल वाणी की वह प्रवचना हृदयो की शिशुता को, सेल खिलाती, भुलवाती जो उस निमल विभुता को। जीवन का उद्देश्य लक्ष्य की प्रगति दिशा को पल मे अपने एक मधुर इगित से बदल सके जो छल मे। वही शक्ति अवलब मनोहर निज मनु को थी देती, जो अपने अभिनय से मन को सुख मे उलझा लेती। कम ॥५४५॥