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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५८६

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जब देखो बैठी हुई वही शालिया बीन कर नहो श्रात । या अन इकट्ठे करती है होती न तनिक सी कभी क्लात । बीजो का सग्रह और उधर चलती है तक्ली भरी गीत, सब कुछ लेकर बैठी है वह मेरा अस्तित्व हुआ अतीत -3 लौटे थे मृगया से थक कर दिखलाई पडता गुफा द्वार, पर और न आगे बढ़ने की इच्छा होती, करते विचार । मृग डाल दिया, फिर धनु को भी मनु बैठ गये शिथिलित शरीर, बिसरे ५ सब उपकरण वही आयुध, प्रत्यचा, शुग, तीर । ईया १५५१॥