पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५९०

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"मैने तो एक बनाया है चल कर देखो मेरा फुटीर, यो कह कर श्रद्धा हाथ पकड मनु को ले चली वही अधीर । उस गुफा समीप पुआलो की छाजन छोटी सी शाति-पुज, कोमल लतिकाओ की डालें मिल सघन बनाती जहाँ कुज, थे वातायन भी क्टे हुये प्राचीर पणमय रचित शुभ्र, आवें क्षण भर तो चले जाय रुक जाय कही न समीर, अभ्र । उममे था झूला पडा हुआ वेतसो रता का मुरुचि पूर्ण, विछ रहा धरातल पर चिक्ना सुमनो का कोमल सुरभि चूर्ण । ईर्ष्या ॥५५॥ 5