पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६०६

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नीरव थी प्राणो की पुकार मूच्छित जीवन सर निस्तरग नीहार घिर रहा था अपार निस्तब्ध अलस वन कर सोयी चलती न रही चचल वयार पीमा मा मुकुलित कज आप अपनी मधु वूदें मधुर मौन निस्वन दिगत म रहे रद्ध सहसा बोले मनु "अरे कोन आठोक्मयो स्मिति चेतनता आयी यह हेमवती छाया" तद्रा के स्वप्न तिरोहित थे रिसरी केवल उजली माया वह स्परा दुलार पुलक से भर बीते युग को उठता पुकार वीचिया नाचती बार वा। प्रतिभा प्रसन्न मुख सहज खोल वह बोली "मैं हूँ इडा, कहो तुम कौन यहां पर रहे डोल।" नासिका नुकीली के पतले पुट फरक रहे कर स्मित अमोल "मनु मेरा नाम सुनो बाले । मै विश्व पथिक सह रहा क्लेश।" "स्वागत । पर देख रहे हो तुम यह उजडा सारस्वत प्रदेश भौतिक हलचल से यह चचल हो उठा देश ही था मेरा इसमे अब तक हूँ पड़ी इसी आशा से आये दिन मेरा।' "मैं तो आया हूँ देवि बता दो जीवन का क्या सहज मोल भव के भविष्य का द्वार खोल। इडा ॥५७९॥