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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६३२

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"तुम्हे तृप्ति कर सुख के साधन सकल बताया, मैंने ही श्रम भाग किया फिर वग बनाया। अत्याचार प्रकृति कृत हम सब जो सहते है, करते कुछ प्रतिकार न अब हम चुप रहते है 1 आज न पशु हैं हम, या गूंगे काननचारी, यह उपकृति क्या भूल गये तुम आज मारी" वे बोले सक्रोध मानसिक भीषण दुख से, "देखो पाप पुकार उठा अपने ही मुख से । तुमने योगक्षेम से अधिक सचय वाला, लोभ सिखा कर इस विचार सकट म डाला। हम सवेदन शील हो चले यही मिला सुख, वष्ट समझने लगे वना कर निज कृत्रिम दुख । प्रकृत शक्ति तुमने यत्रो से सब की छीनी । शोपण कर जीवनी बना दी जजर झीनी । और इडा पर यह क्या अत्याचार किया है ? इसीलिए तू हम सब के वल यहा जिया है ? आज वदिनी मेरी रानी इडा यहाँ है ओ यायावर ! अव तेरा निस्तार कहाँ है 791 सघप ॥६०९॥