पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६४६

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नव कोमल अपलम्ब साथ में वय किशोर उंगली परडे, चला आ रहा मौन धेय्य मा अपनी माता को जवडे । थके हुए थे दुखी बटोही वे दोनो ही मां बेटे, सो रहे थे भूले मनु को जो घायल हो कर लेटे। इडा आज कुछ द्रवित हो रही दुनिया का देम्बा उगने, पहुँची पाम और फिर पूछा "तुमरो दिमराया विमने ? इग रजनी में यहां भटकती जाआगो तुम योग तो, बैठो आज अधिर चार है व्यथा गांठ जि गोग तो। निर्यद ॥ ६२३॥