पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६४७

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यात्रा में जीवन की लबी खोये भी हैं मिल जाते, जीवन है तो कभी मिलन है कट जाती दुख की रातें।" श्रद्धा रुको कुमार श्रान्त था मिलता है विश्राम यही चली इडा के साथ जहाँ पर वन्हि शिखा प्रज्वलित रही। करती, सहसा धधको वेदी ज्वाला मडप आलोक्ति कामायनी देख पायी कुछ पहुँची उस तक डग भरती। और वही मनु। घायल सचमु तो क्या सच्चा स्वप्न रहा ? आह प्राण प्रिय ! यह क्या ? तुम या।" घुला हृदय बन नीर बहा । प्रसाद वाङ्गमय ॥ ६२४ ॥