पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

'मा जल दे, कुछ प्यासे होगे क्या बैठी कर रही यहाँ ? मुखर हो गया सूना मडप यह सजीवता रही वहाँ? परिवार वना, आत्मीयता घुली उस घर में छोटा मा छाया एक मधुर स्वर उस पर श्रद्धा वा सगीत बना। तुमुल कोलाहल कलह मे हृदय की बात रे मन । विक्ल होकर नित्य चचल, खोजती जब नीद के पल, चेतना थक सी रही तब, मैं मलय की वात रे मन । प्रसाद वाङ्गमय ।। ६२६ ॥