पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६५८

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1 श्वास पवन पर चढ कर मेरे दूरागत वशी रव सी, गूंज उठी तुम, विश्व कुहर मे दिव्य रागिनी अभिनव सा। जीवन जलनिधि के तल से जो मुक्ता थे वे निकल पडे, जगमगल गाते मेरे रोम खड़े। सगीत तुम्हारा आशा की आलोक किरन से कुछ मानस से ले मेरे, लघु जलधर का सृजन हुआ था जिसमा शशिलेवा घेरे- उस पर बिजली की माला सी झूम पडी तुम प्रभा भरी, और जलद वह रिमझिम बरसा वनस्थली हुई हरी। निर्वेद ॥११॥ मन