पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

इसके स्तर-स्तर मे मौन शान्ति, शीतल अगाध है, ताप भ्रान्ति, परिवतन मय यह चिर मङ्गल, मुसक्याते इसम भाव सकल, हँसता है इसमे कालाहल, उल्लास भरा सा अन्तस्तल, मेरा निवास अति मधुर कान्ति, यह एक नोड है सुखद शान्ति।' "अम्बे फिर क्यो इतना विराग, मुझ पर न हुई क्यो सानुराग' पीछे मुड श्रद्धा ने देखा, वह इडा मलिन छबि की रेखा, ज्यो राहुग्रस्त सी शशि लेखा, जिस पर विषाद की विप रेखा, कुछ ग्रहण कर रहा दोन त्याग सोया जिसका है भाग्य, जागे। प्रसाद वाङ्गमय ॥ ६४६॥