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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६७१

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चेतनता का भौतिक विभाग- कर, जग को वाट दिया विराग, चिति का स्वरूप यह नित्य जगत, वह रूप बदलता है शत शत, कण विरह मिलन मय नृत्य निरत, उरलासपूर्ण आनन्द सतत, राग, तल्लीन पूण है एक झकृत है केवल 'जाग जाग ।' में लोक अग्नि मे तप निन्तात आहुति प्रसन्न देती प्रशान्त, तू क्षमा न कर कुछ चाह रही, जलती छाती की दाह रही, तो ले ले जो निधि पास रही, मुझको बस अपनी राह रही, रह सौम्य । यही, हो सुखद प्रान्त, विनिमय कर दे कर कम कान्त । प्रसाद वाङ्गमय ॥ ६५२॥