पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६७३

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- 'हे सौम्य इडा का शुचि दुलार हर लेगा तेरा व्यथा भार, यह तकमयो तू श्रद्धामय, तू मननशील कर कम अभय, इसका तू सर सताप निचय, हर ले, हो मानव भाग्य उदय, सर की समरसता कर प्रचार मेरे सुत । सुन मा का पुकार ।" "अति मधुर वचन विश्वास मूल, मुझको न कभी ये जायें भूल, हे देवि ! तुम्हारा स्नेह प्रबल, बन दिव्य श्रेय-उद्गम अविरल, आपण घन सा वितरे जल, निर्वासित हो सताप सकल, वह इडा प्रणत ले चरण धूल, पकडा कुमार कर मृदुल फूल । प्रसाद वाङ्गमय ॥ ६५४ ॥