सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मैं इस गिजा सट म अधोर, मह भूग पपा सीमा गीर, हा भाव चम में गिपिग पर पानी थापा या पर तो वि माही या पर, गा गागर, रूपता गा गा या नोर, जिमम आप या पुगा सार । "प्रियतमा यह तिगिरतम्भ गत है स्मरण घराता विंगत यान, यह प्रलय गात्ति यह पागल जब अर्पित पर जाया मरल, में हुई तुम्हारी थी रियल, क्या भूले में, इता दुबल, तब चला जहाँ पर शान्ति प्रता, में नित्य, तुम्हारी मत्य बात । प्रसाद वाङ्गमय ।।६६०३ -