पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

घवरामो मत | यह समतल है देखो तो, हम कहा आ गये।" मनु ने दखा आँप खोल कर जैसे कुछ कुछ त्राण पा गये। ऊष्मा का अभिनव अनुभव था ग्रह, तारा नक्षत्र अस्त थे, दिवा राति के सधि काल में ये सब कोई नही व्यस्त थे। ऋतुओ के स्तर हुए तिरोहित भू - मडल रेखा विलीन सी, निराधार उम महादेश में उदित सचेतनता नवीन सी | - निदिक विश्व, आलोक विन्दु भी तीन दिखाई पडे अलग वे, निभुवन के प्रतिनिधि थे मानो वे अनमिल थे किंतु सजग थे। मनु ने पूछा, "कौन नये गह ये है श्रद्ध। मुझे बताओ, मैं किस लोक बीच पहुंचा, इस इद्रजाल से मुझे बचायो।" रहस्य ॥ ६७१॥