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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६९१

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"इस त्रिकाण के मध्य विन्दु तुम शक्ति विपुल क्षमतावाल ये, एक एक को स्थिर हो देखो इच्छा, ज्ञान, क्रिया वाले ये । वह देखो रागाम्ण है जो ऊपा के कदुक सा सुदर, छायामय कमनीय भाव - मयी प्रतिमा का मदिर। कलेवर शब्द स्पर्श, रस, रूप गध की पारदर्शिनी सुघड पुतलिया, चारो ओर नृत्य करती ज्यो रूपवती रगीन तितलिया। इस कुसुमाकर के कानन के अरुण पराग पटल छाया मे, इठलाती सोती जगती ये अपनी भाव भरी माया मे । साद वाङ्गमय।। ६७२ ॥