पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६९२

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९ u कोमल अंगडाई है लेती, मादकता की लहर उठा कर अपना अवर तर कर देती। आलिंगन सी मधुर प्रेरणा छू लेती फिर, मिहरन बनती, नव अलम्वुपा की ब्रीडा सी खुल जाती है, फिर जा मुंदती यह जीवन की मध्यभूमि है रस धारा से सिंचित होती, मधुर लालमा की लहरो से यह प्रवाहिका स्पदित होती । जिमके तट पर विद्युत कण से मनोहारिणी आकृति वाले छायामय सुपमा मे विह्वल विचर रहे सुन्दर मतवाले। सुमन सकुलित भूमि रध्र से मधुर गध उठती रस भीनी, वाप्प अदृश्य फुहारे इसमे छूट रहे, रस बूंदें झोनी । रहस्य ॥६७३॥