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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/७०२

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यहाँ विभाजन यम तुला का अधिकारो की व्याख्या करता, यह निरीह, पर कुछ पाकर ही अपनी ढीली साँसें भरता । उत्तमता इनका निजस्व है अम्बुज वाले सर सा देसो, जीवन - मधु एक्य कर रही उन ममाखिया सा बस लेखो। यहाँ शरद की धवल ज्योत्स्ना अधकार को भेद निम्वरती, यह अनवस्था, युगल मिले से विकल व्यवस्था सदा पिसरती। देसो वे सब सौम्य बने हैं किन्तु सशकित हैं दोपो से, वे सक्त दभ के चलते - चालन मिम परितोपो से। यहाँ अछूत रहा जीवन रग छूओ मत मचित होने दो, बम इतना ही भाग तुम्हारा तृपा! मृपा, वचित होने दो।