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उल्लास रहा युवको पा शिगु गण या था मृदु वलाल, महिला भगल गाना से मुखरित था यह यात्री दल। चमरो पर योझ एदे थे वे चलते थे मिल अविरल, कुछ शिशु भी बैठ उन्ही पर अपने ही बने पुतूहल । माताएं परडे उनको वातें थी परती जाती, 'हम यहां चल रहे' यह सब उनको विधिवत समझाती। कह रहा एक था 'तू तो कब से ही सुना रही है- अर आ पहुंची लो देखो आगे वह भूमि यही है। पर बढती हो चलती है रखने का नाम नहीं है, वह तोथ कहा है वह तो जिसके हित दौड रही है।" प्रसाद वाङ्गमय ।। ६८८॥