पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/७१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

"वह अगला समतल जिस पर है देवदारु का कानन घन अपनी प्याली भरते ले जिसके दल से हिमकन ? हाँ इसी ढालवें को जब बस सहज उतर जावे हम, फिर सम्मुख तीथ मिलेगा वह अति उज्ज्वल पावनतम ।" वह इडा समीप पहुंच कर बोला उसको रकने को, बालप था, मचल गया था कुछ और क्या सुनने को। आनंद ॥६८९