सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/७१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सारस्वत नगर निवासी हम आये यात्रा करने, यह व्यर्थ रिक जीवन घट पीयूष सलिल से भरने । इस वृषभ धम प्रतिनिधि को उत्सर्ग करेंगे जाकर। चिर मुक्त रहे यह निभय स्वच्छन्द सदा सुख पाकर।" सब सम्हल गये थे आगे थी कुछ नोची उतरायो जिस समतल घाटी में वह थी हरियाली से छायो। श्रम, ताप और पथ पोडा क्षण भर मे थे अहिल, सामने विराट धवल कर अपनी महिमा स विड