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उसको तलहटी मनोहर श्यामल तृण वीरुध वाली, नव कुज, गुहा गृह सुन्दर हृद से भर रही निराली । वह मजरियो का कानन कुछ मरण पीत हरियाली, प्रतिपद सुमन सकुल थे छिप गई उन्ही मे डाली। यात्री दल ने स्क देखा मानस का दृश्य निराला, खग मग को अति सुखदायक छोटा सा जगत उजाला । मरकत की वेदी पर ज्यो रक्खा हीरे का पानी, छोटा सा मुकुर प्रकृति का या सोयी राका रानी। दिनकर गिरि के पीछे अब हिमकर था चढा गगन मे, कैलास प्रदोष प्रभा मे स्थिर बैठा किसी लगन मे । प्रमाद वाङ्गमय ॥६९४॥