पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/७१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भगवति, समझी में | सचमुच कुछ भी न समझ थी मुझको, सब को ही भुला रही थी अभ्यास यही था मुझको। हम एक कुटुम्ब बना कर यात्रा करने हैं भाये. सुन कर यह दिव्य तपोवन जिसमे सव अघ छुट जाये।" मनु ने कुछ कुछ मुसक्याकर कैलास ओर दिखलाया, बोले "देखो कि यहां पर कोई भी नही पराया। हम अय न और कुटुम्बी हम केवल एक 'हमी हैं, तुम सब मेरे अवयव हो जिसमे कुछ नही कमी है। १ पाण्डुलिपि में हमी। भाद। १९७॥