पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/८८

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सब नरा निज मुदर मुनमुन मनि पागे । हिये ह यारद मुग्नि, मुन मन लागे॥ प्रेम-राज्य (पूर्वाद्ध) बाल विभावर सोहत, अरण किरण अवली सो। कृष्णा मोडत निजनव, तररित जल लहरीमो ॥ मलयजधीर पवन बन-उपवन महं सन्चरही। पोक्लि कुल क्लनाद परत अति मधुर विहरही ।। टालीरोट सुयुद्धमृमि म प्राव सूर्यकेतु महराज, प्रतिपक्षी बहु यवन राज मिति मेन मजायो । वोसम सग कादरता, 7 दृश्य दिवायो।। सिंहद्वार पर गडे नरेश लयं सेना का। याचवराजे यूथप सँगधेरै बनाता॥ सेनापति सह मैच, युद्धभूमिहि चर दाहा। पार वप मा वाल्य इव आगमन सुसीन्दा ।। विजयनगरे। महाबलः ॥ चदोरज्वल मुम मयुर, निमा होमी को भारत । महज मगेने बग, मनादर ताहि संवारत ।।