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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/९३

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प्रेम-राज्य (उत्तराद्ध) सुरसरि-तीर तमाल कुञ्ज, श्यामल वनराजी। हिमगिरि धवल उतुग, सुखाया जल महं छाजी ॥ कुसुम सहित तरवर, की साखा जल भल परसत । परिमल पूर प्रभजन सों जहँ जन मन हरपत ।। कोकिल, कीर, मराल कलनाद करत जहँ विलसही। विकच कमल मकरन्दरि, मधुकर को मन हुलसही ॥ नवल प्रफुल्ल रसाल, बाल पादप के छाही । बैठी वालाएक सुभग, श्री अंग अंग माही ।। कुसुम कलिनसों बने, मनोहर भूखन सोहैं। सहजहिं छवि छलपति, जह दोक नैन हँसोहैं । कलसी जल भरि धरि रही, मृगछौना थिर सामुहे । कर पर कोर मराल ढिग, सिखी वृदहू जहँ जुहे ॥ प्रसाद वाङ्गमय ॥२८॥ -