पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१२४

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सहसा इम आथय के मिल जाने से उन दोना को विचार करन का अवमर नहीं मिला। वाथम न कहा-नही नही इसम में अपना अपमान ममझूगा । घण्टी हसन लगी । वाथम लज्जित हो गया परन्तु पतिया न धीरे म बाथम का ममझा दिया कि घण्टी को मरला के माथ रहने म विशेप भविधा होगी। विजय और घण्टी का जब वही रहना निश्चित हो गया । वाथम के यहां रहत विजय 1 महीना चीन गय । उमम काम करने की स्फूर्ति और परिश्रम की उत्कण्ठा बढ़ गई है। चित्र लिय वह दिन भर तूलिका चनाया करता है । घटा बीतन पर वह पर वार सिर उठा कर खिडकी मे मौलसिरी के युभ की हरियानी दख नता है । वह नादिरशाह का एक चित्र अकित कर रहा था जिसम नादिरशाह हाथी पर बैठकर उमसी लगाम मांग रहा है। मुगल दरबार के चापनूस चित्रकार न यद्यपि उस मूर्ख बनान के लिए ही यह चित्र बनाया था परन्तु इस माहमी आक्रमणकारी के मुख में भय नही प्रत्युन पराधीन सवारी पर चढने की एक शका ही प्रकट हा रही है । चित्रकार को उस भयभीत चित्रित करन का साहस नही हुआ । सम्भवत उन आंधी क चले जान के बाद मुहम्मदशाह उस चित्र का देखकर बहुत प्रमन्न हुआ होगा। प्रतिलिपि ठीक-ठीक हो रही थी। पाथम उस चित्र का दपकर बहुत प्रसन हो रहा था। विजय की कला-कुशलता म उसका पूरा विश्वास हो चना या-वैसे ही पुरान रग-मसाल वैसी ही अकन शैली थी। कोई भी उसे देखकर यह नहीं कह सकता कि यह प्राचीन दिल्ली कलम का चित्र नहीं है। आज चित्र पूरा हुआ है। अभी वह तुलिका हाथ मे रख ही रहा था वि दूर पर घण्टी दिखाई दी। उन जैसे उत्तेजना को एक घट मिली थकावट मिट गई । उसन तर आँखो मे धण्टी का जल्हड योवन दखा । वह इतना अपने काम म लवलीन था कि उम घण्टी का परिचय इन दिना बहुत साधारण हा गया था। आज उसकी दृष्टि में नवीनता थी। उसन उल्लास से पुकारा-घण्टी । घटी की उदासी पल भर में चली गई । वह एक गुलाब का फूल तोडती हुई उस खिडकी क पास जा पहुंची । विजय ने वहा--मेरा चित्र पूरा हो गया । ___ आह । मैं तो घबरा गई थी कि चित्र कब तक बनगा । ऐसा भी कोई काम करता है । न न न । विजय बाचु, अब आप दूसरा चित्र न बनाना--मुझे यहाँ लाकर अच्छे बन्दीगृह म रख दिया । कभी खोज तो तेत एक दो बात भी तो ६४ प्रसाद वाङमय