पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१२५

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पूछ लेते । –घण्टी ने उलाहनो की झडी लगा दो । विजय ने अपनी भूल का अनुभव किया । यह निश्चित नहीं है कि सौन्दर्य हमे सब समय आकृष्ट कर ले । आज विजय न एक क्षण के लिए आँख खोलकर घण्टी को देखा----उस बालिका म कुतूहल छलक रहा है । सौन्दय का उन्माद है | आकर्षण ह । विजय न कहा तुम्हे बडा कष्ट हआ घण्टी । घण्टी न कहा-आशा है, अब कप्ट न दोगे । पीछे स वाथम न प्रवश करते हुए कहा-विजय वाबू बहुत सुन्दर 'माडन है, देखिए यदि आप नादिरशाह का चित्र पूरा कर चुके हा तो एक मौलिक चित्र बनाइए। विजय न देखा, यह सत्य है । एक कुशल शिल्पी की वनाई हुई प्रतिमाघण्टी-खडी रही । बाथम चित्र देखने लगा । फिर दोनो चित्रो को मिलावर देखा । उमने सहमा कहा--आश्चर्य । इस सफलता के लिए बधाई । विजय प्रसन हो रहा था । उसी समय वाथम ने फिर कहा-विजय बाबू मैं धापणा करता हूँ कि आप भारत के एक प्रमुख चित्रकार हागे । क्या आप मुझे आशा दगे कि मैं इस अवसर पर आपके मित्र को कुछ उपहार दू? ___ विजय हंसने लगा । वाथम ने अपनी उँगली स हीर की अंगूठी निकाली और घण्टी की ओर बढाना चाहा । वह हिचक रहा था । घण्टो हंस रही थी। विजय न दखा, चचल घण्टी की आँखा म हीरे का पानी चमकने लगा था। उसन समझा, यह वालिका प्रमन होगी। सचमुच दोना हाथा में सोन की एक-एक पतली चूडिया क अतिरिक्त और कोई आभूषण घण्टी के पास न था। विजय ने कहा--तुम्हारी इच्छा हा, तो पहन सकती हो–घण्टी न हाथ फैलाकर ल लिया । व्यापारी वायम न फिर गला माफ करते हुए कहा-विजय बाबू स्वतन्त्र व्यवसाय और स्वावलम्बन का महत्त्व आप लोग कम समयत है, यही कारण है कि भारतीया के उत्तम-स-उत्तम गुण दव रह जात हैं । मैं आज आपस यह अनुराध करता है कि आपके माता-पिता चाह जितन धनवान हा, परन्तु आप इस कला का व्यवसाय की दृष्टि से कीजिए । आप मफल होग, मैं इसम आपका महायक हूँ | क्या आप इस नये माडन पर एक मौलिक चित्र बनावगे ? विजय ने कहा--आज विश्राम करूंगा, कल आपस कहूँगा । कपाल ६५