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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१३२

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लेन की उसकी इच्छा हुई, क्सिी वासना स नही, वरन् एक सहृदयता स । वह धीरे-धीरे अपने होठ उसके पोन के पास तक ले गया। उसकी गरम सांसा की अनुभूति घण्टी को हुई । वह पलभर के लिए पुनकित हा गई पर आखे वन्द किये रही । विजय न प्रमाद में एक दिन उसक रग डालन के अवसर पर उसका आलिगन करक, घण्टी क हृदय म नवीन भावो की सृष्टि कर दी थी। वह उसी प्रमोद का, आख बन्द करक आवाहन करन लगी परन्तु नशम चूर विजय न जाने क्या जैस सचेत हा गया । उसक मुह म धीर-स निकर पडा-यमुना |--- और वह हटकर खडा हा गया । विजय चिन्तित भाव स लौट पडा। वह घूमत-घूमत बँगल क वाहर निकल आया, और सड़क पर या ही चलने लगा । आधे घण्ट तव वह चला गया फिर उसी सडक स लोटन लगा । वडे-वड वृक्षा की छाया न सडक पर पडती हुई चाँदनी को कही-कही छिपा लिया है। विजय उसी अन्धकार म स चनना चाहता है । यह चाँदनी स यमुना और अंधेरी स घण्टी की तुलना करता हुआ, उपन मन के विनाद का उपकरण जुटा रहा है। महसा उसव काना म कुछ परिचित स्वर सुनाई पड़ । उस स्मरण हो जाया--उसी इश्कवाल का शब्द । हाँ ठीक है, वही तो ह। विजय ठिठककर खडा हा गया । साइकिल पकडे एक सब-इस्पेक्टर और साथ म वही तांगेवाला दोना बात करते हुए आ रह है। सब-क्यो नवाव । आजक्ल काई मामला नही दत हा? ताँगे-इतन मामल दिय मरी भी खवर आपन ली? सब०–तो तुम रुपया ही चाहत हो न ? ताँगे०- पर यह इनाम रुपया म न होगा। सव०--फिर क्या ? तांगे--रुपया आप लीजिए, मुझे तो वह बुत मिल जानी चाहिए । इतना १५ ही करना होगा। सब०-आह । तुमन फिर वही वात छेडी ! तुम नहीं जानत हा, यह वाथम ____एक अग्रेज ह और उसकी उन लोगा पर मेहरवानी ह । हाँ इतना हो सकता है कि तुम उसको अपन हाथो म कर ला, फिर मैं तुमको फंसने न दूगा। तागे-यह ता जान-जाखम का सोदा है। सव०—फिर मैं क्या करूं? पोछे लगे रहा, कभी ता हाथ लग जायगी । मैं सम्हाल लूगा। हाँ, यह तो बताओ, उस चौवाइन का क्या हुआ, जिस तुम विन्दराबन की बता रहे थे । मुझ नही दिखलाया, क्या ? १०२ प्रसाद वाडमय