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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१३३

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तांग०-वही तो वहाँ है । यह परदेमी न जान कह स कूद पडा । नही तो अब तक दोनो बात करते अब आगे बढ़ गय । विजय न पीछा करक बाता को सुनना अनुचित समझा । वह बँगल की ओर शीघ्रता से चल पड़ा। ___कुरसी पर बैठे वह सोचन लगा-सचमुच घण्टी एक निस्सहाय युवती है उसकी रक्षा करनी ही चाहिए । उसी दिन स विजय न घण्टी स पूर्ववत् मित्रता का बताव प्रारम्भ कर दिया-वही हंसना-बोलना, वही साथ-साथ घूमना फिरना। विजय एक दिन हण्डबग की सफाई कर रहा था। जस्मात् उस मगल का वह यन्त्र और साना मिल गया। उसन एकान्त म बैठकर उस फिर बनाने का प्रयत्न किया और वह कृतकाय भी हुआ-सचमुच वह एक त्रिकोण स्वर्ण-यत्र बन गया । विजय के मन म लडाई खडी हो गई-उसने सोचा कि सरला स उसक पुत्र को मिला दूं, फिर उसे शका हुई, सम्भव ह कि मगल उसका पुत्र न हो । उसन अनवधानता से उस प्रश्न को टाल दिया । नही कहा जा सकता कि इस विचार म मगल के प्रति विद्वेप न भी कुछ सहायता की थी या नहीं। बहुत दिनो की पडी हुइ एक सुन्दर वामुरी भी उसके वेग म मिल गई। वह उस लेकर बजान लगा ! विजय की दिनचया नियमित हा चली । चित्र बनाना बशी बजाना और कभी-कभी घण्टी के साथ बैठकर तागे पर घूमन चले जाना, इन्ही कामो म उसका दिन मुख स बीतने लगा। कास १०३