पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१३४

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पृदावन मादूर एक हरा भगटाना, यमुना मामगार वरना। पग-पड मारी इतना पहुनागन है fr यह ला दूर गगन पर IT डा छायादार निकुज मानूम पडता ' IT पार पथर सादिया है जिनम m कर ऊपर जान पर छाटान्गा माण ग मन्दिर र उमा बाग पार पाठगेर दासान है। गाम्वामी कृष्णशरण उग मन्दिर व अध्यर माट-पमठ मतपस्या परुप है। उनका स्वच्छ वस्त्र प्रदर रश मुगमन वाणिमा नार मा म भरो और जोगिक प्रभा मुजन परती है। मूनि । मामन हा दातान म प्रात बेट रहन है । पाठरिया म कुछ युद्ध माधु और बरमा प्रिय रहता है । सर भगवान् नामान्विन प्रमाल पावर गन्तुष्ट नार प्रसन्न है । यमुना मा या रहती है। एक दिन नष्णशग्ण बेठना कुछ लिय रहय। उनर कुशामन पर यन गामग्री पड़ी थी। परमाणु वैटा हना उन पत्रात पत्र पर रहा था। प्रभात जभा तरुण नही हुना गा गन्न वा शीतन पवन कुछ वस्त्रा की आवश्यकता उत्पन्न कर रहा था। यमुना उस प्रागण म साह, द रही था। गास्वामा न निखना वन्द बरव माधु स कहा-हे समटकर रख दा । माधु न निपिपत्रा का बांधत हुए पूछा-जाजता एकादशी है भारत का पाठ नागा । नहीं। माधु चना गया। यमुना उभी झाड, लगा रही थी। गास्वामी न सम्नह पुकारा-यमुन । यमुना झाड, रखकर हाथ जाडकर सामने आई। रणशरण न पूछा घटी । तुवे काइ वप्ट ता नहीं है। नही महागज । यमुन । भगवान् दुखिया स अत्यन्त स्नह वरत है । दुरा भगवान् का सात्विक दान है—मगनमय उपहार है । इस पाकर एक बार अन्त करण के सच्च स्वर म १०४ प्रसाद वाडमय