पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१६१

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तब आपन क्या निश्चय किया? –सरला तीव्र स्वर से बोली। घण्टी को उस हत्याकाड स वचा लना भी अपराध है, ऐसा मैंन कभी सोचा भा नहीं । ~~वाथम न कहा___ वायम । तुम जितने भीतर स क्रूर और निष्ठुर हो, यदि ऊपर स भी वही व्यवहार रखते, तो तुम्हारी मनुष्यता का कल्याण होता । तुम अपनी दुर्बलता को परापकार क पर्दे म क्या छिपाना चाहत हो । नृशस । यदि मुझम विश्वास की तनिक भी मात्रा न होती, तो मै अधिक मुखी रहती-कहती हुइ लतिका हाँफन लगी । सब चुप य । ___ कुवडी खटखटात हुए पादरी जान न उस शाति का भग किया और आत ही बाला--मैं समझ चुका हूँ, जब दोना एक-दूसरे पर अविश्वास करत हो, तब उह अलग हो जाना चाहिए। दवा हुआ विद्वेप छाती क भीतर सर्प क समान फुफकारा करता है, कव अपन ही का वह घायल करगा, काई नही कह सकता। मरी बच्ची लतिका । मारगरेट | हाँ पिता | आप ठीक कहत हैं और अव वाथम को भी इस स्वीकार कर लन म कोई विरोध न होना चाहिए। -मारगरेट न कहा । मुझे सब स्वीकार है। अब अधिक सफाई देना मैं अपमान समझता हूँ । -बाथम न रुखपन स कहा। ठीक है वाथम | तुम्ह सफाई दन, अपन को निरपराध सिद्ध करन की क्या आवश्यकता है । पुरुष को, स्वतन्त्र पुरुप को, इन साधारण वाता स धवराने की सम्भावना नही, पाखण्ड ! ---गरजती हुई सरला ने कहा। फिर लतिका स बोली-चलो बैटौ पादरी सब कुछ कर लगा, सम्बन्ध विच्छेद और नया सम्बन्ध जोडने म वह पटु है। लतिका और सरला उठकर चली गई । घण्टी काठ की पुतली-सी बैठी चुपचाप वह अभिनय दख रही थी। पादरी ने उसक सिर पर दुलार स हाथ फेरत ककाल १३३