पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२०४

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सब झुकत है, सब लोहा मानते हैं । किन्तु सदाचार की प्रतिमा...ता अर्पण करना होगा धर्म की बलिवेदी पर मन का स्वातश्य । कर तो दिया, मन कहाँ स्वतन्त्र रहा । अव उसे एक राह पर लगाना होगा ।वह जोर से बोल उठा-गाला ! क्या यही ।। गाला चिन्तित मगल का मुंह देख रही थी। वह हंस पडी, वाली--कहाँ धूम रहे हो मगल? मगल चौक उठा । उसन दया, जिस खोजता था वही पत्र में मुझे पुकार रहा है । वह तुरन्त बोला- कही तो नहीं गाला । आज पहला अवसर था, जर गाला न मगला को उसके नाम से पुकारा। उसम सरलता पी, हृदय की छाया थी। मगल ने अभिनता का अनुभव किया। हंस पड़ा। ____ तुम कुछ नाच रह थे । यही कि स्त्रियाँ एसा प्रेम पर सक्ता है ? तर्क न कहा हागा नही ! व्यवहार न समझाया हागा-यह सब स्वप्न है । यही न? पर मैं कहती हूँ सब सत्य है स्त्री का हृदय प्रेम का रगमच है । तुमन शास्त्र पढा हे, फिर भी तुम स्त्रिया व हृदय को परखन म उतने कुशल नही हो, क्योकि बीच म रास्कर मगल ने पूछा-और तुम कैसे प्रेम का रहस्य जानती हो गाना | तुम भी तो स्त्रियो का यह जन्मसिद्ध उत्तराधिकार है मगल ! उस खाजना, परखना नहीं होता, कही स ले आना नही होता । वह विखरा रहता है असावधानी से - बनकुबेर की विभूति क समान | उस सम्हालर क्वल एक ओर व्यय करना पडता है-इतना ही ना !-हंसकर गाला न कहा। और पुरुप का ?-मगल ने पूछा। हिसाब लगाना पडता हे, उस सीखना पड़ता है। ससार म जैस उसकी महत्त्वाकाक्षा की और भी बहुत-सी विभूतियाँ है, वैसे ही यह भी एक है । पद्मिनी के समान जल-मग्ना स्त्रियाँ ही जानता है, और पुरुप केवल उसी जली हुई राख को उठाकर अलाउद्दीन के सदृश बिखेर दना ही ता जानत है |-कहतकहत गाला तन गई थी । मगल ने देखा वह ऊर्जस्वित सौन्दय । बात बदलने के लिए गाला न पाठ्यक्रम-सम्बन्धी अपने उपालम्भ कह सुनाये और पाठशाला शिक्षाक्रम या मनोरजक विवाद छिडा। मगल उस काननवासिनी के तर्कजालो में बार-बार जान-बूझकर अपन को पमा दता । अन्त में मगल न स्वीकार किया कि वह पाठ्यक्रम बदला जायगा । सरल पाठा म बालको १७६ . प्रसाद,वाइमय