पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२१०

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कृष्णशरण की टेकरी प्रज-भर म रहस्यमय कुतूहल और मनसनी का कन्द्र बन रही थी। निरजन के सहयोग से उसम नवजीवन का सचार हान लगा। कुछ ही दिनो से सरला और लतिका भी उस विश्राम-भवन म आ गयी थी। लतिका बडे चाव म वहाँ उपदेश सुनती। सरला तो एक प्रधान महिला कार्यकर्यो थी। उसके हृदय म नई स्फूर्ति थी और शरीर म नय साहम का संचार था । सघ म बडी सजीवता आ चली। इधर यमुना क अभियाग में भी सघ प्रधान भाग ल रहा था, इसलिए बडी चहल-पहल रहती। एक दिन वृन्दावन की गलिया म सब जगह बड-बडे विज्ञापन चिपक रह थे । उन्ह लोग भय और आश्चर्य से पढन लग -- भारत-सघ हिन्दू-धर्म का सर्वसाधारण के लिए खुला हुआ द्वार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्या स (जा किसी विशप कुल में जन्म लने के कारण मसार म सबस अलग रहकर, निस्मार महत्ता में फंसे है ) भिन्न एक नवीन हिन्दू जाति का सगठन करान वाला मुदृढ कन्द्र जिसका आदर्श प्राचीन हैराम, कृष्ण, बुद्ध की आर्य-सस्कृति का प्रचारक वही भारत-सघ सवका आमन्त्रित करता है। दूसर दिन नया विज्ञापन लगा १८२ प्रसाद वाडमय