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भारत-सघ वर्तमान क्प्ट क दिना म श्रेणीवाद धार्मिक पवित्रतावाद, अभिजात्यवाद, इत्यादि अनक रूपा म फैल हुए सब देशो के भिन्न प्रकारो के जातिवाद की अत्यन्त उपेक्षा करता है ! श्राराम ने शवरी का आतिथ्य स्वीकार किया था श्रीकृष्ण न दासी-पुत्र विदुर का आतिथ्य ग्रहण किया था बुद्धदव न वश्याक निमश्रण का रक्षा की थी इन घटनाआ का स्मरण करता हआ भारत-सघ मानवता क नाम पर सबको गले से लगाता है। राम, कृष्ण और बुद्ध महापुरुप थ इन लोगा ने सत्साहस का पुरस्कार पाया था-- कष्ट, तीव्र उपेक्षा और तिरस्कार । भारत-सघ भी आप लोगो की ठोकरा की धूल सिर स लगावेगा। वृन्दावन उत्तेजना की उँगलिया पर नाचन लगा। विरोध म और पक्ष मदेवमन्दिरो, कुजा, गलियो और घाटा पर वात हान नगी। तीसरे दिन फिर विज्ञापन लगा मनुष्य अपनी सुविधा के लिए अपन और इश्वर के सम्बध का धर्म, अपने और अन्य मनुष्या क सम्वन्ध को नोति, और रोटी-बटी के सम्बन्ध का समाज, कहन लगता है, कम-स-कम ककाल १८३