पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२५२

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अरे हाँ, यह तो मैं भूल ही गया या चलो किधर चलूं ? यहाँ तो तुम्ही पथ-प्रदर्शक हो । कहकर इन्द्रदेव हंस पडे । दोनो, झोपडिया के भीतर घुसे । एक अपरिचित वालिका के सहारे चौवेजी का कराहते देखकर इन्द्रदेव ने कहा-ता क्या सचमुच म यह मान लूं कि तुम्हारा घुटना टूट गया ? मैं इस पर कभी विश्वास नहीं कर सकता। चौवे, तुम्हारे धुटने 'टूटने वाली हड्डी' के बने ही नही ! सरकार, यही तो मैं भी साचता हुआ चलने का प्रयल पर रहा हूँ। परन्तु आह । बडी पीडा है, मोच आ गई होगी। ता भी इस छोकरी के सहारे थाडी दूर चल सकूँगा । चलिए-1 चौरेजी ने कहा। ___ अभी तक वो मे किसी ने न पूछा था कि तू कौन है, कहाँ रहती है, या हम लोगो को कहाँ लिवा जा रही है। वजो ने स्वय ही कहा--पाम हो झापडी है । नाप लोग वही तक चलिए, फिर जैसी इच्छा। सब बओ के माथ मैदान के उम छोर पर जलने वाले दीपक के सम्मुख चले, जहाँ से "बक्षा | वो!' कहकर कोई पुकार रहा था। वञ्जो ने कहाआती हूँ। झोपडी के दूसरे भाग क पास पहुँचकर बजो क्षण-भर के लिए रुकी। चौवेजो को छप्पर के नीचे पड़ी हुई एक खाट पर बैठन का सकेत करके वह घूमी ही थी कि बुड्ढे ने कहा- वञ्जो 1 कहाँ है रे ? अकाल की कहानी और अपनी कथा न मुनेगी ? मुझे नीद आ रही है। आ गई-~-कहती हुई बञ्जो भीतर चनी गई। बगल के छप्पर के नीचे इन्द्रदव और शैला खडे रहे । चौवेजी खाट पर बैठे थे, किन्तु कराहने की व्याकुलता दबाकर । एक लडकी के आश्रय म आकर इन्द्रदेव भी चक्ति सोच रहे थे-~-कही यह घुड्ढा हम लागा के यहाँ आने से चिढेगा तो नही। सब चुपचाप थे। बुड्ढे ने कहा-कहाँ रही तू बक्षो । एक आदमी को चोट लगी थी, उसी । ता-तू क्या कर रही थी वह चल नहीं सकता था, उसी को सहारा देकर-- मरा नही, वच गया । गोली चलने का शिकार खेलने का-आनन्द नही मिला | अच्छा, तो तू उनका उपकार करने गई थी। पगली । यह मैं मानता हूँ कि मनुष्य को कभी-कभी अनिच्छा से भी कोई काम कर लेना पडता है, पर २२४ प्रसाद वाङ्मय