पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२५४

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तो खाट-कम्बल और सब सामान कहाँ स जुटता। अच्छा चौवेजी हैं तो ब्राह्मण, उनको कुछ अडचन न होगी, पर इन साहबो ठाट के लोगो के लिए मेरी झोपडी मे कहाँ ऊँह । गये, चलो, अच्छा हुआ। बो आ जाय, तो उसकी चोट लेल लगाकर सेक दे। बुड्ढे को फिर खासी आने लगो। वह खासता हुआ इधर के विचारों से छुट्टी पाने की चेष्टा करने लगा। उधर चौवेजी गोरसी म सुलगते हुए कडा पर हाथ गरम करके घुटना सक रहे थे । इतने मे बो मधुवा के साथ लौट आई। बापू । जो आये थे, जिन्हे मैं पहुँचाने गई थी, वही तो धामपुर क जमीदार है। लालटेन लेकर कई नौकर-चाकर उन्हे खोज रहे थे। पगडडी पर ही उन लोगा से भट हुई । मधुवा के साथ मै लौट आई। एक साँस म बञ्जो कहने को तो कह गई, पर वुड्ढे को समझ मे कुछ न आया। उसने कहा--मधुवा | उस शीशी म जो जडी का तेल है, उसे लगा कर ब्राह्मण का घुटना सेंक दे, उसे चोट आ गई है। मधुवा तेल लेकर घुटना सेकने चला । वो पुआल म कम्बल लकर घुसी। कुछ पुआल और कुछ कम्बल से गले तक शरीर ढंक कर वह सान का अभिनय करने लगी। पलको पर ठढ लगन स वीच-बीच म वह आँख खोलन मूदने का खिलवाड कर रही थी। जव आंखे बद रहती, तब एक गोरा-गोरा मुहकरुणा की मिठास से भरा हुआ गाल-मटोल नन्हा-सा मुंह-उसके सामन हंसने लगता । उसमे ममता का आकपण था । आँख खुलने पर वही पुरानी झोपडी को छाजन । अत्यन्त विराधी दृश्य ।। दोनो ने उसके कुतूहल-पूर्ण हृदय के साथ छेडछाड की, किन्तु विजय हुई आँख बन्द करने की । शैला के सगीत के समान सुन्दर शब्द उसकी हत्तन्त्री मे झनझना उठे। गैला के समीप होने की उसके हृदय म स्थान पाने की-बलवती वासना वञ्जा के मन मे जगी । वह सोत-सोते स्वप्न देखने लगी। स्वप्न देखते-दखते गैना के साथ खलने लगी। मधुवा से तेल मलवाते हुए चौवेजी ने पूछा-क्या जी । तुम यहाँ कहाँ रहते हो ? क्या काम करते हो? क्या तुम इस वुड्ढे के यहाँ नौकर हा ? उसके लडके तो नही मालूम पडते? परन्तु मधुवा चुप था। चौवेजी न घबराकर कहा- बस करा, अव दर्द नही रहा । वाह-वाह । २२६ प्रसाद वाङ्मय