पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२५६

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धामपुर एक बडा ताल्लुका है। उसमे चौदह गाँव हैं। गगा के किनारेकिनारे उसका विस्तार दूर तक चला गया है। इन्द्रदेव यही के युवक जमीदार थे। पिता को राजा की उपाधि मिली थी। बी० ए० पास करके जब इन्द्रदेव न बैरिस्टरी के लिए विलायत-यात्रा की, तब पिता के मन में बडा उत्साह था। किन्तु इन्द्रदेव धनी के लडके थे। उन्ह पढने-लिखने की उतनी आवश्यकता न थी, जितनी लन्दन का सामाजिक बनने की। लन्दन-नगर में भी उन्हे पूर्व और पश्चिम का प्रत्यक्ष परिचय मिला। पूर्वी भाग मे पश्चिमी जनता का जो साधारण समुदाय है, उतना ही विरोध पूर्ण है, जितना कि विस्तृत पूर्व और पश्चिम का । एक ओर सुगन्ध जल के फौवारे छूटते हैं, बिजली से गरम कमरो मे जाते ही कपड़े उतार देने की आवश्यकता होती है, दूसरी ओर बरफ और पाले मे दूकानो के चबूतरो के नीचे अर्ध-नग्न दरिद्रा का रात्रि-निवास । इन्ददेव कभी-कभी उस पूर्वी भाग को सैर के लिए चले जाते थे। ___एक शिशिर रजनी थी। इन्द्रदेव मित्रो के निमन्त्रण से लौटकर सडक के किनारे, मुंह पर अत्यन्त शीतल पवन का तीखा अनुभव करते हुए, बिजली के प्रकाश मे धीरे-धीरे अपने 'मेस' की ओर लौट रहे थे । पुल के नीचे पहुंच कर वह रुक गये । उन्होने देखा--कितने ही अभागे, पुल की कमानी के नीचे अपना रात्रि-निवास बनाये हुए, आपस मे लड झगड़ रहे हैं । एक रोटी पूरी ही खा जायगा। -इतना बडा अत्याचार न सह सकने के कारण जब तक स्त्री उसके हाथ से छीन लेने के लिए अपनी शराब को खुमारी से भरी आँखो को चढ़ाती ही रहती है, तब तक लडका उचक कर छीन लेता है। चटपट तमाचो का शब्द होना तुमुल युद्ध के आरम्भ होने की सूचना देता है । धौल-धप्पड, गाली-गलौज बीच-बीच में फूहड हंसी भी सुनाई पड जाती है। __इन्द्रदेव चुपचाप वह दृश्य देख रहे थे और सोच रहे थे--इतना अकूत धन २२८ प्रसाद वाङ्मय