पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२५७

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विदशा स ल आकर भी क्या इन साहसी उद्योगियो न अपने दश की दरिद्रत का नाश किया ? अन्य देशो की प्रवृति का रक्त इन लोगा की कितनी प्यास बुझा सका है? सहसा एक लम्बी-सी पतली-दुबली लडको उनक पास आकर कुछ याचना की । इन्द्रदेव ने गहरी दृष्टि से उस विवर्ण मुख को देख कर पूछा-क्यो, तुम्हार पिता-माता नहीं है ? पिता जेल म है, माता मर गई है । और इतने अनाथाय? उनम जगह नहीं। तुम्हारे कपडे से शराब को दुर्गन्ध आ रही है । क्या तुम 'जैक बहुत ज्यादा पी गया था, उसी ने के कर दिया है। दूसरा कपडा नही जो बदलूं, बडी सरदी है। कहकर लडकी ने अपनी छाती के पास का कपडा मुठ्ठियो मे समेट लिया। तुम नौकरी क्यो नही कर लेती? रखता कौन है ? हम लोगो का तो वे बदमाश, गिरह-कट आवारे समयते है। पास खडे होने तो आगे उस लडकी के दांत आपस म रगडकर बजने लगे। यह स्पष्ट कुछ न कह सकी। ___ इन्द्रदव ओठ काटते हुए क्षण भर विचार करने लग । एक छोकरे ने आकर लडकी को धक्का देकर कहा-जो पाती, सब शराब पी जाती है। इसका देना न दना सव बराबर है। लडकी ने क्रोध से कहा-जैक | अपनी करनी मुझ पर क्यो लादता है ? तू ही माग ले, मैं जाती हूँ। वह धूमकर जाने के लिए तैयार थी कि इन्द्रदव ने कहा--अच्छा सुनो तो, तुम पास के भोजनालय तक चलो, तुमको खाने के लिए, और मिल सका तो कोई भी दिलवा दूंगा। छोकरा 'हो-हो-हो । करके हँस पडा। बोला-जा न शैला । आज की रात तो गरमी से विता ले, फिर कल देखा जायगा। उसका अश्लील व्यग्य इन्द्रदव को व्यथित कर रहा था, किन्तु शैला ने कहा -~चलिये। दोना चल पडे । इन्द्रदेव आगे थे, पीछे शला । लन्दन का विद्य त-प्रकाश निस्तब्ध होकर उन दोना का निर्विकार पद विक्षेप देख रहा था। सहसा धूमकर तितली २२६