पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२६०

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ओह । वडी कठोरता है।--कहती हुई शैला एक क्षण के लिए अन्यमनस्क हो गई। कुछ दूर चुपचाप चलन पर इन्द्रदेव ने कहा -शैला । हम लोग नीम के पास आ गये । देखो, यही सोढी है, चलो देखे, चौबे क्या कर रहा है । पालना-नही-नही-पालकी तो पहुंच गई होगी इन्द्रदेव। यह भी कोई सवारी है ? तुम्हारे यहाँ रईस लोग इसी पर चढ़ते हैं--आदमिया पर। क्या ? बिना किसी बीमारी के । यह ता अच्छा तमाशा है ।—कहकर शैला ने हंस दिया। अब तो बीमारा से बदले डाक्टर ही यहाँ पालकी पर चढते है शला | ला, पहले तुम्ही सीढी पर चढ़ो। दोनो सीढी पर चढकर बाते करते हुए वनजरिया में पहुंचे। दखते है, तो चौवेजी अपने सामान से लैस खडे है। शैला ने हँसकर पूछा-चौवेजी । आप ता पालको पर जायंगे ? मुझ हुआ क्या है । रामदीन को आज विना मारे मैं न छाईगा। सरकार । उसने बडा तग किया। मुझे गोद में उठाकर पालकी पर बिठाता था । छावनी पर चलकर उस बदमाश छोकरे की खबर लूंगा। बुरा क्या करता था ? मेरे कहने से वह बेचारा तो तुम्हारी सेवा करना चाहता था और तुम चिढते थे। अच्छा, चलो तुम पालकी म बैठा ।-इन्द्रदेव ने कहा। फिर वही-पालकी में बैठी । क्या मरा ब्याह होगा? ठहरो भी, तुम्हारा घुटना तो टूट गया है न । तुम चलोगे कैस? तेल क्या था, बिल्कुल जादू । मेम साहब ने जा दवा का बक्स मेरे बटुए म रख दिया था-वही, जिसमे सागूदाना की-सी गोलियाँ रहती हे-मैने खोल डाला। एक शीशी गोली खा डाली। न गुड तीता न मीठा-सच मानिये मम साहब । आपकी दवा मेरे-जैसे उजड्डो के लिए नहीं। मेरा तो विश्वास है कि उस तेल ने मुझे रातभर मे चगा कर दिया । मैं अब पालकी पर न चढूंगा। गाव-भर मे मेरी दिल्लगी राम-राम ।। शैला हंस रही थी । इन्द्रदेव ने कहा-चौबे । हामियोपैथो में बीमारी की दवा नही होती, दवा की बीमारी होती है । क्यो शैला! ___इन्द्रदेव । तुमने कभी इसका अनुभव नही किया है। नहीं ता इसकी हंसी न उडाते । अच्छा, चलो उस लडकी को तो बुलावे । वह कहाँ है ? उसे कल कुछ इनाम नहीं दिया। वही अच्छी लडकी है । झापडी म से लठिया टेकते हुए बुड्ढा २३२ प्रसाद वाङ्मय