पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२८२

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मे मैं ही उनका खाना बनाता हूँ, चौवेजी का काम भी मैं ही करता हूँ ? अव तो मम साहब के भरोसे कूद रहे हो न । देखा तो तुम्हारी मेम साहब की दुर्दशा चार दिन में होती है । बीबी रानी ___ क्या बकती है । चल, अपना काम देख । वह तो कहती थी कि रामदीन, तुझको मैं सरकार से कहकर खेत दिलवा दूंगी। वही चल, अपना मुंह देख, मुझसे चला है सगाई करने | तीन ही दिन म छोटी कोठी से भी तेरी मेम साहव भागती हैं। तव लेना खेत । अरे तो क्या आगे रामदीन कुछ न बोल सका, क्योकि एक गौर वर्ण की प्रौढा म्भी धोती लिये हुए उत्तर की ओर से धीरे-धीरे गगा म उतर रही थी। उसे देखते ही दोनो को सिट्टी भूल गई। दोनो ही गगा जल मे से निकलार उस अभिवादन करके भलेमानसो की तरह अपनी-अपनी धोती पहनने लगे। उस स्त्री के अग पर कोई आभूषण न था, और न तो कोई सधवा का चिह्न ! था केवल उज्ज्वलता का पवित्र तेज, जो उसकी मोटी-सी धोती के बाहर भी प्रकट था। ___एक पत्थर पर अपनी धोती रखते हुए उसने घूमकर पूछा-क्यो रे रामदीन, तुझे कभी घटे भर की भी छट्टी नहीं मिलती? आज अठवारो हो गया, कोई सौदा ले आना है । तेरी नानी कहती थी, आज रामदीन आने वाला है । सो तू आज आने पर भी यही धमाचौकडी मचा रहा है ? ___ मालकिन | मै नहाकर कोट मे आ ही रहा था । यही मलिया बडी पाजी है, इसने धोती पर पानी के छोटे सरकार रामदीन अपनी वनावटी बात को आगे न बढा सका। वीच ही म मलिया अपनी सफाई देती हुई वोल उठी-इसकी छाती फट जाय, झूठा कही का । मालकिन, यह मुझको गाली दे रहा है । इसका घमड बढ़ गया है। मेम साहब का खानसामा बन गया है, तो चला है मुझसे सगाई करने । ____ मालकिन अपनी आती हुई हँसी को रोककर बोली-वह देख, इसकी नानी आ रही है, उसी से कह दे। मलिया, सचमुच रामदोन पाजी हा गया है। दोनो ने देखा, बुढिया-रामदीन की नानी-तावे का एक धडा लिये धीरेधीरे आ रही है। मालकिन स्नान करन लगो । कभी-कभी स्नान करने के लिए वह इधर आ जाती, तो कई काम करती हुई जाती। भाई मधुबन के लिए मछली लेना और २५४ प्रसाद वाङ्मय