पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२८३

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मल्लाही रानी की किसी प्रजा का सहेजकर गृहस्थी का और काई काम करा ना भी उनके नहाने का उद्देश्य हाता। उनको देखते ही बूढे मल्लाह न अपनी बसी खीची। मछली फस चुकी थो। वह स्नान करके सूय को प्रणाम करती हुई जब ऊपर आकर खडी हुई तो मल्लाह ने मछली सामने लाकर रख दी। उन्हाने रामदीन से कहा- इसे लेता चल। मलिया न बुढ़िया के स्नान कर लने पर उसने लाये हुए घडे को भर लिया। मालकिन को गीली धोती लेकर बुढिया उनके साथ हो गई। ___मल्लाह ने कहा-मालकिन, आज इस पाजी रामदीन को बिना मार मैं न छोडता । आज कई दिन पर मैं मधुवन वादू क लिए मछली पसान बैठा था, यह आकर ऊधम मचाने लगा । इसी की चाल से वडा-सा रोहू आकर निकल गया । आज लगा है छावनी की नौकरी करने, तो घमड का ठिकाना ही नही । हम लोग आपको प्रजा है मालकिन । यह बूढा इस बात को नहीं भूल सकता। अभी का का लडका-यह क्या जाने कि धामपुर के असली मालिक-चार आन के पुरान हिस्सेदार कौन हैं । मालकिन वेईमानी स वह सब चना गया तो क्या हुवा ? हम लोग अपने मालिक को न पहचानगे ? मालकिन का उसका यह व्याख्यान अच्छा न लगा। उनके अच्छे दिना का स्मरण करा दने को उस समम काई आवश्यक्ता न था। किन्तु सीधा और बूढ़ा मल्लाह उस विगडे घर को वडाई म और कहता ही क्या? शरकाट क कुलीन जमीदार मधुवन के पास अब तीन बीघे मेत और वही खंडहर-सा शेरकोट है इसके अतिरिक्त और कुछ चाहे न बचा हो विन्तु पुरानी गौरव-गाथाएँ तो आज भी सजीव हैं। किसी समय शेरकोट क नाम मनोग मम्मान म सिर झुकाते थे। मधुवन क लिए वश-गौरव का अभिमान छोडकर मुक्दमे म सब कुछ हार कर जब उसके पिता मर गये तो उसको वही विधवा बहन ने आकर भाई को सम्हाला था। उसकी ससुराल सम्पन्न थी किन्तु विधवा राजकुमारी के दरिद्ध भाई को कौन देखता। उसी ने शेरकोट के खंडहर म दीपक जलान का काम अपन हाथो म लिया। शेरकोट मल्लाहो टोने के समीप उत्तर को जार वडे-स ऊंचे टीले पर था। मल्लाही टोला और शेरकोट के बीच एक वडा सा वटवृक्ष था। वहीं दो चार बडे बडे पत्थर थे। उमी के नीचे स्नान करने का घाट था। मल्लाही टोले म तितली २५५